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उझानी के गांव बुर्राफरीदपुर का सुप्रसिद्ध शिवालय के अंदर स्थापित कटा हुआ शिवलिंग। फोटो: उझानी बुर्राफरीदपुर के सुप्रसिद्ध शिवालय

जनपद मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन से पांच किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में गांव बुर्राफरीदपुर स्थित सुप्रसिद्ध महादेव का मंदिर है इस मंदिर में जो शिव लिंग स्थापित है जो 150 वर्ष पूर्व दातागंज के गाँव  बौथरिया निवासी पंडित  घासी राम शर्मा को गंगा स्नान को पैदल जाते समय बुर्रा गांव के घनी झंडियों में आराम के दौरान हुए सपने के बाद खुदाई में फावडा लगने से कटा हुआ शिवलिंग प्राप्त हुआ था। इस का अलग महत्व है मंदिर के बारे में कहना  है कि जो सावन मास में प्रत्येक सोमवार को भगवान शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है उसकी मनौती पूर्ण होने पर मंदिर परिसर में कोई पीने के पानी को नल लगवाता है कोई निः शुल्क भंडारे का आयोजन करता है।

मंदिर का इतिहास

लगभग 150 वर्ष पूर्व दातागंज के गांव बौथरिया निवासी पडित घासी राम शर्मा गांव से हर पूर्णमासी को कछला गंगा स्नान को पैदल आते थे जो बुर्राफरीद पुर के घने जंगल व झाडियों के बीच आराम करने को रूक गए वहां पर भगवान शिव ने सपना दिया कि तू जहां पर लेटा है वहां पर मै हूं , ग्रामीणों से चर्चा करने पर उन्होने वहां पर खुदाई करवाई खुदाई में फावडा शिवलिंग में लगजाने से वहां पर दूध व खून की धारा वहने लगी धोवी ने इसको मजाक समझा उसने उठाकर फेक दिया जब वह घर पहुचा तो मूर्छित स्वजनों को देखकर उसने शिव को स्थापित कर मनौती मांगी तब कही जाकर उसके स्वजन होश में आए वहां पर मंदिर का निमार्ण हुआ बही पर विशाल पीपल का वृक्ष था जो अपने आप रोजना ऊपर उठ जाता था मंदिर का निर्माण होता गया मंदिर के पुजारी पडित घासी राम के बाद भोला नाथ उनके बाद राजेन्द्र शर्मा के बाद पांच पीढी पर मुनीष शर्मा उर्फ सोनू उनके भाई अवनीश शर्मा, डॉ. केशव शर्मा मंदिर पर पुजारी का कार्य कर रहे है। इस मंदिर की क्षेत्र में नम्बर बन का शिवालय माना जाता है।

मंदिर की विशेषता

बुर्राफरीदपुर शिवालय पर सावन के प्रत्येक सोमवार को जलाभिषेक करने व नब्बे दिन लगातार जलाषिक करने से प्रत्येक शिव भक्त की मनोकामना पूर्ण होने पर मंदिर परिसर में शिव गंगा के आसपास नल लगवाते है वही विशाल भंडारे का आयोजन करते है।

बुर्राफरीद पुर के पुजारी मुनीष शर्मा उर्फ सोनू कहते है सावन मास में मंदिर पर जलाभिषेक करने आने वाले शिव भक्तों को विशाल भंडारे का आयोजन रहता है वही कावडियों के ठहरने को व्यवस्था रहती है मंदिर परिसर में मेला लगाया जाता है जिसमें सौदर्य प्रसाधन से लेकर झूला चरख, मिष्ठान आदि की दुकाने लगती है।

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